Friday, March 28, 2014

28/March/2014

खूबसूरत विषय है ख़ुशी का। अपनी बात अपने अंदाज़ में कहूंगा क्योकि ख़ुशी मिलती है इससे। ख़ुशी वह है जिसे पाने के लिए लोग जीवन भर जाने कितनी कोशिशे करते है। हर किसी में अपनी ख़ुशी ढूंढते है। कभी नक़ल करते है कभी खुद के तरीके आजमाते है। घर बदलते है दोस्त बदलते है। घर के सामान तक बदलते है। कभी शादी करते है। कभी शादीशुदा ज़िन्दगी से दूर भागते है। हर तरह के लोग है सबकी अपनी अलग दुनिया है खुशियों को सेलिब्रेट करने के सबके तरीके अलग है। दोस्तों अगर महसूस कर सको तो ख़ुशी हर जगह है। आप के अपने घर में भी। गैरों के घर में भी। फेसबुक पर भी, मोबाइल के मेसेज बॉक्स पर भी। किसी को कागज़ पर पेंटिंग ब्रश चलाकर ख़ुशी मिलती है। किसी को लिखकर। किसी को गाना बहुत पसंद है। किसी को खाना बहुत पसंद है। उम्मीदें अपनी अपनी रास्ते अपने-अपने। शहर से लेकर गाँव तक। किसी मोहल्ले से लेकर खेत खलिहानो तक खुशियां ही खुशियां। बस हमें ढलना आना चाहिए। एक मज़दूर जो बिना बिस्तर के भी अपनी रात काट लेता है उसके पास भी खुशियां है। और जो शख्स नरम बिस्तर पर रात काटता है उसके पास अपनी खुशियां है। मेरी समझ से घर बदलने से। रिश्ते बदलने से खुशियां नहीं मिलती और मिल भी नहीं सकती। खुद को खुश रखने के लिए हम खुद को अकेला रखते है , मगर क्या उससे खुशियां मिल सकती है ? खुशियां मिलती है जो रिश्ते हमने बनाये है अपनों और गैरों से भी उन्हें निभाने से। क्युकी रिश्ता कोई भी हो प्रॉब्लम हर रिश्ते में आती रहती है उन्हें खूबसूरत हमें ही बनाना होता है। जो बनता है विश्वाश के बलबूते। अगर आपको भरोसा है तो आप खुश हो। घर बदलने कि जरुरत नहीं बल्कि जो समस्याएं हैं उन्हें दूर करो। जो रिश्ते बनाएं है उन्हें जीना सीखो। जहर मत घोलो। अपना दिल साफ़ रखो हमेशा खुश रहोगे दूसरों को भी आपसे कभी कोई शिकायत नहीं होगी। चोरी मत करो जो दो तरह कि होती है बातों कि चोरी यानि झूठ बोलना बोले तो fliert करना। एक होती है सामानो कि रुपये पैसे कि चोरी। वो शख्स जो झूठ बोलता है सिवाय दुःख के किसी को खुशियां नहीं दे सकता। और न ही अपनी झूठी ख़ुशी से जिंदगी बिता सकता है। सच को स्वीकार करो। हर इंसान से प्यार करो छोटा-बड़ा , कैसा भी हो और थोडा नहीं बहुत।  उस हर चीज़ जो आपके आस-पास बिखरी पड़ी है वो चाहे बेजान हो या उसमे जान हो। खुश रहना है तो। मैंने तो ख़ुशी ढूंढी है शायद इसलिए यहाँ आता हूँ। कुछ दोस्त जो अजीज है मैं उन्हें अपनी ज़िन्दगी का एक हिस्सा मानता हूँ। हम एक दूसरे को मानते रहेंगे इज्जत देंगे, रिश्ते निभाते रहेंगे और खुशियां पाते रहेंगे। मेरी बातों में वैसे ऐसा कुछ तो था नहीं जो बुरा लगे But फिर भी किसी को कुछ बुरा लगा हो तो माफ़ करना। प्रसनीत ऐसा ही है।

न बदलो घर न रिश्ते ये जहां अपना है,
साथ लेकर चलो सबको हर समां अपना है ,
वक़्त करवट लेता है हर पल ,
इसमें ही ढूढ़ लो अपनी खुशियां
जी लो ज़िन्दगी
ख़ुशी के हज़ार पल कुर्बान कर
देखो फिर जीने का मज़ा ,
न होगा कोई गैर तब
दिल से मानो तो हर कोई यहाँ अपना है।
मुस्कुराते रहो हमेशा :)

~ Prasneet Yadav ~

Wednesday, February 5, 2014

5-February-2014

पलकों पे जो छाये आशियाना बना दो,
मुझे आज फिर से दीवाना बना दो।
चोंट  न लगती हो जहाँ किसी को ,
ऐसा कोई एक ज़माना बना दो।
रागिनी संग राग हो दिलवालों का साथ हो
ऐसा कोई फसाना बना दो।
खो जाऊं मै  इस कदर न हो जहाँ कि फिकर 
मुझे अनजाना बना दो।
ये बात बहुत कीमत रखती है मेरी खातिर,
आज घर घर सजा दो।
आने वाले है वो इंतज़ार फिर कैसा ?
दूरियां  मिटा दो।
ये फूलों का मौसम है बहुत प्यारा
तुम भी अपने आँगन में
एक फूल खिला दो।
हो छोटा सा घर हँसता हुआ
पलकों पे जो छाये आशियाना बना दो,
मुझे आज फिर से दीवाना बना दो।     

Tuesday, February 4, 2014

मन में उमड़ते भावों कि मेरी डायरी से। …

इस बदलते मौसम में क्या लिखूं? मेरा ये पोस्ट जाने कहाँ पढ़ा जाए कौन कौन इसे पढ़े कौन नहीं ? वहाँ सर्दी हो धूप हो , मौसम बसंती हो या फिर आसमान में बादल छायें हों या फिर बादलों के बीच सूरज कि हो रही हो लुकाछिपी. कोई आसमान को देख रहा हो कोई गुनगुनी धूप सेंक रहा हो. किसी ने आज फिर कॉलेज बंक किया हो या फिर कोई कॉलेज कैंटीन में बैठा किसी को याद कर रहा हो? हो सकता है शायद…. वजह कोई भी हो मौसम कहीं पर कैसा भी हो – हम लिख रहे हैं अपना काम है शौक है. समुन्दर कि लहरों सी उठ रहीं मन में ये बातें हमसफ़र है मेरी. कई दिनों पहले कुछ लाइन्स पढ़ीं थीं- “कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए” हाँ जी इस मौसम पर सॉरी-सॉरी मौसम नहीं मन पर बहुत कुछ डिपेंड करता है. ये मन ही तो….हमें किसी और के मन से मिलाता है. ये मन ही हमें ऊपर उठाता है बहुत ऊपर और कभी नीचे गिराता है. मन वो है जहाँ हम नहीं होते वो होता है. वो जिसे हमने कभी देखा न हो ये मन उसे देखता है.
बड़ी धूप लग रही है आज, मै इस वक़्त जहाँ बैठा हूँ. मन करता है किसी पेड़ कि छाया तले चला जाऊं. ये मन मानता नहीं है कभी धूप मांगता है कभी छाया. चलो धूप में ही बैठते हैं और थोड़ी देर. बात शुरू कि थी मैंने इस बदल रहे मौसम से. इंसान भी तो बदलता है बदलाव होना भी ठीक है वक़्त के साथ. क्या रखा है अतीत कि यादों में यादों के सिवा. जिंदगी या फिर सच ? हाँ अतीत से कुछ सीख सकते हैं तो सीख लें. वर्तमान सच है. बीते कल कि बातें आने वाले कल कि बातें खाली पलों में ये साथ होती हैं. कभी तो इनसे हमें ख़ुशी मिलती है कभी चिंता, कभी कोई पुराना जख्म फिर से उभर आता है. पर सच है ये वर्तमान ”present ” जो चल रहा है दौड़ रहा है १-१ सेकंड. रोकना तो दूर हम इसे पकड़ भी नहीं सकते हैं. हाँ इन पलों में अपनी ज़िन्दगी जरुर जी सकते हैं. खट्टी-मीठी चटपटी सी ज़िन्दगी. स्वाद भर सकते हैं. स्वाद ले सकते हैं. आने वाले कल कि सोंच में बीते कल कि सोंच में इसे क्यों गवाना. ये भी लम्हा-लम्हा कटकर बीता कल बनने वाला है.
कल कि बात पर याद आया कल कुछ नहीं लिख पाया. अब कल को सोचकर होगा क्या? क्या वो वापस आएगा और कहेगा “हैल्लो मिस्टर लो मै वापस आ गया करो आज जो करना है कुछ विशेष जो तुम यादगार बनाना चाहते हो” क्या होगा ऐसा कुछ…..
ये हैण्ड वॉच कि लगातार चलती सेकंड वाली सुई, ये सर के ऊपर से थोड़ा आगे जाता सूरज , ये चलती तेज़ हवा जैसे पेड़ के पत्ते टूट कर अभी बिखर जायेंगे सब कुछ दिख रहा है मुझे ….ये बदलता मौसम ….चलते चलते अभी यूँ ही शाम हो जायेगी. सर्दियां भी तो हैं इधर दिन को गर्मी रात को सर्दी. पता नहीं आपके तरफ कैसा मौसम होगा… यही तो मौसम है…. होगी शाम इधर सूरज के छुप जाने के बाद बदन पर फिर फुल स्वेटर.
स्वेटर से याद आया…. सर्दियों में जैसे हम ऊन से सलाई के जरिये स्वेटर बुनते हैं. ठीक वैसे ही मौसम कोई भी मुझे कलम के जरिये या फिर की- बोर्ड कि टक-टक के जरिये कागज़ पर ये शब्द बुनना अच्छा लगता है. मन में उमड़ते भावों को संजोना ….
आशा है सर्दी हो धूप हो , पतझड़ हो या फिर बसंत सभी अपने मौसम को एन्जॉय कर रहे होंगे, अभी के लिए इतना ही खाना खाने का वक़्त है. आगे क्रमशः …. फिर मिलेंगे। …

~ प्रसनीत यादव ~